कच्छ लोकसभा सीट पर 1996 से ही लगातार बीजेपी का कब्जा बना हुआ है।
यहां पर 1996, 1998, 1999 और 2004 में बीजेपी की तरफ से पुष्पदान गढ़वी ने चुनाव
जीता, तो 2009 का चुनाव बीजेपी की तरफ से पूनमबेट जट नामक महिला युवा नेता ने
जीता। 2009 से ये सीट अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व सीट बन चुकी है।
बीजेपी ने 2014 लोकसभा चुनावों में अपना उम्मीदवार बदल दिया है।
पूनमबेट जट की टिकट काटकर पार्टी ने विनोदभाई चावड़ा को यहां अपना उम्मीदवार बनाया
है। वही कांग्रेस ने कच्छ से दिनेश परमार को मैदान में उतारा है, जिन्होंने मेडिकल
की पढ़ाई की है। इससे पहले परमार जामनगर जिले की कालावड विधानसभा सीट से विधायक रह
चुके हैं।
कच्छ लोकसभा सीट के अंदर विधानसभा की कुल सात सीटें हैं – अबडासा,
मांडवी, भुज, अंजार, गांधीधाम, रापर और मोर्बी। पहली छह सीटें जहां कच्छ जिले का
हिस्सा हैं, वही मोर्बी सीट मोर्बी नामक नये जिले का अंग। 2012 के विधानसभा चुनावों
में इन सात सीटों में से छह पर बीजेपी का कब्जा रहा। इस लोकसभा की एक मात्र
विधानसभा सीट अबडासा पर कांग्रेस ने जीत हासिल की, लेकिन उस कांग्रेसी विधायक छबिल
पटेल ने भी इसी 24 फरवरी को विधान सभा से इस्तीफा देकर बीजेपी ज्वाइन कर ली।
आजादी के पहले कच्छ बड़ी रियासत हुआ करती थी। आजादी के बाद इसका भारत
में विलय हुआ। 1960 में गुजरात के अस्तित्व में आने के बाद ये गुजरात राज्य का
हिस्सा बना। 2001 में भयावह भूकंप की पीड़ा झेली थी कच्छ ने। हालांकि उसके बाद
औद्योगिक तौर पर कच्छ का काफी विकास हुआ। देश का मशहूर बंदरगाह कांडला भी कच्छ
जिले का ही हिस्सा है। कच्छ सीमावर्ती जिला है। विभाजन के वक्त बड़े पैमाने पर
सिंधी शरणार्थी कच्छ में आए और इनके लिए गांधीधाम और आदीपुर जैसे नगर बसाये गये।
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की पृष्ठभूमि भी कच्छ के रन्न में पाकिस्तान की
घुसपैठ थी।
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